हृदय रोग का एक कारण शरीर व मन का असंतुलन भी है और थोग के द्वारा शरीर, मन के बीच संतुलन स्थापित होता है। मैंने कहा था कि आध्यात्मिक रूप से शरीर का कोई महत्व नहीं है वो इसलिए क्योंकि सच्चा आध्यात्मिक व्यक्ति परमात्मा को पाना चाहता है उसके लिए शरीर साधना करने का साधन मात्र है लेकिन सांसारिक व्यक्ति के लिए शारीरिक सौंदर्य, सुख-सुविधा, इन्द्रिय सुख वही सब है तब भी वह अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नहीं है फिर अध्यात्म तो बहुत गहरा है, आज व्यक्ति सिर्फ दिखावटी जीवन जी रहा है मैं और सिर्फ मैं। जिस दिन सहज जीवन जीने लगेगा उस दिन से स्वस्थ तो रहेगा ही खुश भी रहेगा। आज सब के पास बहुत कुछ है, तो भी खुशी नहीं है, क्यों ? भौतिक सुख अपनी जगह ठीक हैं लेकिन जीवन में सुकून जरूरी है। योग- प्राणायाम-ध्यान से हमें सकारात्मक ऊर्जा मि है, ऐसी अद्भुत शांति मिलती है जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किथाएका सकता। शारीरिक सौंदर्य और स्वास्थ्य तो बोनस में मिलता है। दैनिक जीवन में शामिल करके देखिए, आपके हर कार्य में दक्षता बढ़ेगी। अपनी सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाइए नकारात्मकता अपने आप खत्म हो जाएगी। मैं हमेशा कहती हूँ जीवन जीने के लिए है, काटने के लिए नहीं। हृदय रोग में किस प्रकार का आहार-विहार करना चाहिए जानने के लिए जुड़े रहिए मेरे साथ।
स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें।
डॉ सरोज शर्मा (आयुर्वेदाचार्य एवं योग प्रशिक्षक)